लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (26) घाट - घाट का पानी पीना ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = घाट - घाट का पानी पीना
इसी तरह उन सब की जिंदगी से एक और दिन चला जाता, मानव के पास बस कुछ दिन और बचे थे, अपने दादा दादी के साथ रहने के लिए, स्कूल भी बस खुलने ही वाले थे
आज उन्हें गांव में रहते हुए 20 दिन से ज्यादा हो गए थे, पता ही नही चला की कब छुट्टियां पूरी हो गयी।
आज भी सब नहा धोकर आँगन में बैठे सुबह की चाय का लुत्फ़ उठा रहे थे, आशीष भी बहुत अच्छा महसूस कर रहा था अपने घर में, अपनी माँ के पास
वो लोग नाश्ता कर ही रहे थे, कि दरवाज़े पर किसी की दस्तक होती है, आशीष जाकर दरवाज़ा खोलता है, तो सामने खडे अपने पिता के दोस्त मोहन दास जी को देख खुश हो जाता है, जो की एक दुसरे गांव में रहते है
"काका आप, आइये आइये अंदर आइये, सब ठीक तो है " आशीष ने कहा
"हाँ, बेटा सब ठीक है, बस बहुत दिनों से अपने दोस्त से नही मिला था, इसलिए आज सुबह सुबह ही आ गया, तुम कब आये शहर से " मोहन दास जी ने कहा
"बस चंद दिन पहले आया था, आइये अंदर आइये " आशीष ने कहा और उन्हें अपने साथ अंदर ले आया
सब लोग उन्हें देख खुश हुए, खास कर दीन दयाल जी, क्यूंकि वो दोनों बचपन के दोस्त थे, फिर मोहन दास जी दुसरे गांव चले गए और दीन दयाल जी यही रह गए इसी गांव में, लेकिन दूरिया उनके बीच की दूरी को ख़त्म न कर सकी थी, पंद्रह दस दिन में दोनों मिल ही लेते थे
अब काफी समय बाद मोहनदास जी ने चककर लगाया था, और दीन दयाल जी का भी जाना नही हो पाया था
"और सुना मोहन गांव में सब कैसे है, भाभी बच्चें, पोते पोतियाँ " दीन दयाल जी ने कहा
"ईश्वर की बड़ी किरपा है, मुझ पर और मेरे घर वालों पर, तुम लोग सुनाओ, इधर क्या हाल चाल है? बहु बेटे आये हुए " मोहन जी ने कहा
"हाँ, इधर भी सब बढ़या है," दीन दयाल जी ने कहा
उसके बाद चाय पानी हुआ, उसी के साथ ढेर सारी बाते की उन सब ने
तब ही दीन दयाल जी बोल पड़े " मोहन, पिछले दिनों जब मैं तेरे गांव आया था, तुझसे मिलने तब तेरे यहां प्रधानी के चुनाव चल रहे थे, काफी उम्मीदवार खड़े हुए थे, तो फिर कौन जीता "
"हाँ, दीनू चुनाव तो चल रहे थे, इस बार काफी नये चेहरे और नये युवा भी प्रधानी के उम्मीदवार के तोर पर खड़े हुए थे, लेकिन " मोहन जी कहते कहते रुक गए
"लेकिन क्या मोहन?" दीन दयाल जी ने पूछा
"होना क्या था? जब तक गांव की सारी सत्ता चौधरी चरण सिंह के हाथ में है, तब तक कोई दूसरा प्रधान बन ही नही सकता, कम्बख्त घाट -घाट का पानी पिए हुए है, हर दांव पेत्रा जानता है, उसे हरा पाना इतना आसान कहा " मोहन जी ने कहा
"ओह! ये तो बुरा हुआ, उसने तो गांव की तरक्की और खुशहाली के लिए कुछ भी तो नही किया है, फिर भी वही प्रधान बन गया, न तो अच्छी सड़के बनायीं है और न ही कोई स्कूल न ही अस्पताल, बस अपनी कोठी बना कर बैठ गया है, गरीब लोगो का खून चूस कर नर्क भोगु कही का, तू परेशान न हो और हर कुत्ते का दिन आता है, देखना एक दिन कोई उसे भी सवा सेर अवश्य मिलेगा, जो उसकी प्रधानी की कुर्सी उससे छीन लेगा " दीन दयाल जी ने कहा
"हाँ, उम्मीद तो है, चल अच्छा चलता हूँ, बाद में आऊंगा, अभी थोड़ा काम है, पुराने घर में " मोहन जी ने कहा
"ठीक है, लेकिन दोपहर का खाना हमारे साथ खाना, उसके बाद ही अपने गांव जाना " दीन दयाल जी ने कहा
"ठीक है मेरे भाई, आज तक कभी तेरी कोई बात टाली है जो आज टालूँगा, दोपहर में मिलते है " मोहन जी ने कहा और वहाँ से चले गए
लेकिन मानव के लिए वो एक मुहावरा छोड़ गए, जिसका अर्थ जानना मानव के लिए बहुत जरूरी हो गया था, क्यूंकि उसी मुहावरें का अर्थ तो उसे जानना था आज, इसलिए वो दीन दयाल जी से उस मुहावरें का अर्थ और उस मुहावरें का उस प्रधान से क्या लेना देना इस बारे में पूछने लगता है
"ठीक है, बेटा बताता हूँ " दीन दयाल जी ने कहा
"बेटा, घाट घाट का पानी पीने से तात्पर्य हर तरह के दाव, पेंच या फिर कई तरह का अनुभव आने से है
जैसा की मोहन दादा ने बताया, की उनका प्रधान इस बार भी प्रधानी का चुनाव जीत गया, जबकी काफी उम्मीदवार सामने थे उसके, लेकिन फिर भी वो जीत गया, ऐसा इसलिए बेटा क्यूंकि उसके पास हर चीज की ताकत है और अनुभव भी काफी सालों से प्रधानी का, जिसके चलते वो इस बार भी प्रधान बन गया, तब ही मोहन दादा ने कहा की उसे कौन हरा सकता है, उसने घाट घाट का पानी पिया है यानी की उसके पास हर चीज का अनुभव है और वो हर दाव पेत्रा आजमाना जानता है, कब कोनसा दाव खेलना है वो बखूबी जानता है "दीन दयाल जी ने उसे समझाते हुए कहा
मानव को समझ आ गया था और वो अपने दादा को प्यार कर वहाँ से बाहर खेलने चला जाता है
मुहावरों की दुनिया हेतु
सीताराम साहू 'निर्मल'
16-Feb-2023 07:25 PM
Nice 👍🏼
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Varsha_Upadhyay
14-Feb-2023 06:42 PM
शानदार
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Alka jain
14-Feb-2023 12:30 PM
बेहतरीन
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